भारत बंद 9 जुलाई 2025: क्यों थमा देश? जानिए मजदूरों और किसानों के गुस्से की असली वजह

नमस्कार पाठकों,
आज यानी 9 जुलाई 2025 को पूरे देश में एक दिन का 'भारत बंद' देखने को मिला। यह बंद किसी राजनीतिक दल ने नहीं, बल्कि देश की 10 बड़ी ट्रेड यूनियनों, किसानों और श्रमिक संगठनों ने मिलकर बुलाया। इनका आरोप है कि केंद्र सरकार की नीतियाँ मज़दूरों, किसानों और आम जनता के खिलाफ हैं। आइए इस खबर को विस्तार से समझते हैं।

भारत बंद के दौरान सड़क पर बैठे प्रदर्शनकारी मजदूर और किसान, पोस्टर और बैनर के साथ शांतिपूर्ण विरोध
9 जुलाई 2025 को भारत बंद!


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क्यों हुआ भारत बंद?

देश की प्रमुख ट्रेड यूनियनों और किसानों के संगठनों का कहना है कि केंद्र सरकार की नई नीतियाँ श्रमिकों और किसानों के हक को नुकसान पहुँचा रही हैं। खासकर निम्नलिखित बातों को लेकर नाराजगी जताई गई:

  • नए लेबर कोड्स से मज़दूरों के अधिकार कम हो रहे हैं।
  • सरकारी संस्थानों का निजीकरण तेज़ी से किया जा रहा है, जिससे नौकरियाँ जा रही हैं।
  • किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) नहीं मिल रहा।
  • महंगाई, बेरोज़गारी और असंगठित क्षेत्र की अनदेखी हो रही है।

इन सभी मुद्दों पर विरोध दर्ज कराने के लिए 25 करोड़ से अधिक लोग इस भारत बंद में शामिल हुए।

किन-किन सेवाओं पर पड़ा असर?

भारत बंद का असर कई राज्यों और शहरों में साफ देखा गया। खासकर आर्थिक और परिवहन से जुड़ी सेवाएँ प्रभावित रहीं। कुछ प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार हैं:

1. बैंकिंग और बीमा सेवाएँ

बैंक कर्मचारी यूनियनों की हड़ताल के चलते कई बैंक शाखाएँ बंद रहीं। चेक क्लियरिंग और नकद लेनदेन की सेवाएं प्रभावित हुईं। बीमा कंपनियों और डाकघर में भी कर्मचारियों ने काम बंद रखा।

2. परिवहन सेवाएँ

कोलकाता, ओडिशा, केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में बसें कम चलीं। कई जगहों पर प्रदर्शनकारियों ने रेल पटरियों और सड़कों को जाम कर दिया। हालांकि, कुछ राज्यों में बस और मेट्रो सेवा सामान्य रही।

3. सरकारी दफ्तर और संस्थान

कई राज्यों में सरकारी दफ्तरों में कम उपस्थिति देखी गई। कुछ राज्यों में स्कूल और कॉलेजों को भी एहतियातन बंद रखा गया।

कहाँ-कहाँ दिखा ज़्यादा असर?

भारत बंद का सबसे ज़्यादा असर पश्चिम बंगाल, केरल, ओडिशा, त्रिपुरा, बिहार, पंजाब और तमिलनाडु में देखा गया।

  • कोलकाता में हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे और रेलवे ट्रैक को जाम किया।
  • सिलिगुड़ी में ट्रेनों को रोका गया और पुतले जलाकर विरोध दर्ज किया गया।
  • कुछ ड्राइवरों ने हेलमेट पहनकर बस चलाई ताकि किसी भी तरह की झड़प से बचा जा सके।

प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांगें

यूनियनों और संगठनों ने सरकार से 17 प्रमुख मांगें रखीं, जिनमें प्रमुख हैं:

  1. नए लेबर कोड्स को तुरंत रद्द किया जाए।
  2. सभी सरकारी विभागों और सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण रोका जाए।
  3. किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी मिले।
  4. ठेका कर्मियों और दैनिक वेतनभोगियों को नियमित किया जाए।
  5. असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा दी जाए।
  6. मनरेगा जैसी योजनाओं में बजट बढ़ाया जाए।
  7. महंगाई और बेरोज़गारी पर रोक लगे।

इन मांगों का मकसद देश के आम नागरिक, श्रमिक और किसान की सुरक्षा और सम्मान को सुनिश्चित करना है।

सरकार की तैयारी और जवाब

सरकार ने बंद को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए थे:

  • रेलवे ने विशेष सुरक्षा बल तैनात किए ताकि रेल सेवा सामान्य रहे।
  • राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों को कार्यालय आने के निर्देश दिए।
  • पश्चिम बंगाल में सभी सार्वजनिक परिवहन सामान्य रहे और स्कूल-कॉलेज खुले रहे।
  • सरकार ने फिलहाल यूनियनों की मांगों पर कोई सीधी प्रतिक्रिया नहीं दी है।

जनता की राय क्या कहती है?

कुछ लोग इस बंद का समर्थन कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि सरकार को श्रमिकों और किसानों की बात सुननी चाहिए। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह के बंद से आम जनता को परेशानी होती है, खासकर उन लोगों को जो रोज़ कमाकर खाते हैं।

हालाँकि, प्रदर्शनकारियों ने यह स्पष्ट किया कि यह बंद पूरी तरह शांतिपूर्ण रहा और किसी भी तरह की तोड़फोड़ या हिंसा नहीं की गई।

निष्कर्ष

भारत बंद ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि देश में एक बड़ा तबका सरकार की नीतियों से असंतुष्ट है। खासकर मज़दूर, किसान और असंगठित क्षेत्र के लोग खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

यह प्रदर्शन कोई राजनीति से प्रेरित नहीं था, बल्कि यह जनता का जन आंदोलन था — जहाँ मज़दूरों, किसानों, महिलाओं और युवाओं ने अपनी आवाज़ बुलंद की।

अब देखना ये होगा कि क्या सरकार इन मांगों पर विचार करती है या फिर यह आंदोलन और तेज़ होगा।

निष्पक्ष दृष्टिकोण

एक लोकतांत्रिक देश में सरकार और जनता दोनों की भूमिका बराबर होती है। यदि करोड़ों लोग सड़कों पर उतरकर अपनी बात कह रहे हैं, तो उनकी बात को नजरअंदाज करना भी लोकतंत्र के खिलाफ होगा। सरकार को चाहिए कि वो संवाद की राह चुने और ठोस कदम उठाए ताकि देश की अर्थव्यवस्था और समाज दोनों संतुलित रहें।

डिस्क्लेमर: इस पोस्ट में दी गई जानकारी विभिन्न समाचार स्रोतों व रिपोर्ट्स पर आधारित है। हमारा उद्देश्य केवल जानकारी देना है, किसी भी प्रकार की राजनीतिक या व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं। कृपया किसी निर्णय से पहले आधिकारिक स्रोतों से पुष्टि करें।

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